धरती माँ की पुकार सुनो,
हरियाली का सृजन करो।
वृक्षों का संरक्षण करो,
प्रकृति का अर्चन करो।
धरा का स्वर जब गूंज उठे,
पर्यावरण का मान बढ़े।
नदियाँ स्वच्छ और निर्मल हों,
जीवन का हर रंग खिले।
पंछी गाएँ मधुर गीत,
हर दिशा में खुशबू बिखरे।
मानव हो या प्राणी कोई,
सबमें प्रेम का रंग भरे।
पर्यावरण की रक्षा करना,
हम सबका परम कर्तव्य।
आओ मिलकर संकल्प लें,
धरती माँ को दें सतत सुरक्षा।
हरियाली के इस अर्चन से,
धरती का सौंदर्य निखरे।
भविष्य की पीढ़ियों को भी,
जीवन का हर सुख मिले।
आओ, सुनो इस पुकार को,
प्रकृति का संरक्षण करें।
धरती माँ की सेवा करें,
भविष्य का निर्माण करें।
धरती माँ की पुकार सुनो शीर्षक वाली यह कविता पर्यावरण संरक्षण का एक भावपूर्ण आह्वान है। कवि ने धरती को माँ की तरह संबोधित करते हुए, मानव जाति को प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी याद दिलाई है।
पर्यावरण का महत्व: कवि ने पर्यावरण को जीवन का आधार बताया है और इसके संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया है।
वृक्षों का संरक्षण: कवि ने हरियाली बढ़ाने और वृक्षों की रक्षा करने की अपील की है।
जल संरक्षण: स्वच्छ नदियों और जल संसाधनों की सुरक्षा पर जोर दिया गया है।
प्राणी जगत: सभी जीव-जंतुओं के साथ सहजीवन और उनके संरक्षण की बात कही गई है।
मानव कर्तव्य: पर्यावरण की रक्षा को मानव का परम कर्तव्य बताया गया है।
सामूहिक प्रयास: पर्यावरण संरक्षण के लिए समाज के सभी वर्गों को एकजुट होकर काम करने का आह्वान किया गया है।
भविष्य की पीढ़ियाँ: आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वस्थ पर्यावरण की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
संक्षेप में, कविता का मुख्य संदेश है कि धरती माँ की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। हमें पर्यावरण को संरक्षित करके एक स्वस्थ और समृद्ध भविष्य सुनिश्चित करना चाहिए।