ऐसा हो मेरा मन मंदिर

ऐसा हो मेरा मन मंदिर,
स्नेह की मूरत से निखरता जाए,
हर कोने में मधुरता की बुनाई हो,
शांति की धारा निरंतर बहती जाए।

सच्चाई की दीप जलते रहें,
आध्यात्मिकता की छाँव सदा रहे,
प्रेम और दया की गंध से महके,
हर भावना में अच्छाई का संचार हो।

खुशियों की बारिश हर दिन हो,
हर विचार में सकारात्मकता की लहर हो,
आदर और सम्मान का सूर्य चमके,
संसार से जुड़ी हर आत्मा की खुशी हो।

किसी भी त्रासदी की छाया न आए,
सुख और समृद्धि की रौशनी से मन जगमगाए,
ऐसा हो मेरा मन मंदिर,
सच्ची भक्ति और शांति का गहना संजोए।

यह कविता मन को एक पवित्र मंदिर के रूप में चित्रित करती है। कविता की इच्छा है कि उसका मन प्रेम, शांति, सच्चाई, आध्यात्मिकता और सकारात्मकता से भरपूर हो। यह एक आदर्श मन की कल्पना है जो सभी के लिए खुशी और समृद्धि लाए।

मन को मंदिर बनाना: कवि का मानना है कि मन को एक पवित्र स्थान बनाना चाहिए, जैसा कि मंदिर होता है।

प्रेम और स्नेह: मन में प्रेम और स्नेह का निवास होना चाहिए, जिससे यह सुंदर और आकर्षक बन जाए।

मधुरता और शांति: मन में मधुरता और शांति का वास होना चाहिए, जिससे जीवन सुखमय हो।

सच्चाई और आध्यात्मिकता: सच्चाई और आध्यात्मिकता के दीपक मन में हमेशा जलते रहने चाहिए, जिससे सही मार्ग का पता चल सके।

प्रेम, दया और अच्छाई: मन में प्रेम, दया और अच्छाई का संचार होना चाहिए, जिससे वातावरण सकारात्मक हो।

खुशी, सकारात्मकता और सम्मान: मन में खुशियों की बारिश, सकारात्मक विचारों की लहर और आदर-सम्मान का सूर्य चमकना चाहिए।

सुख, समृद्धि और शांति: मन में सुख, समृद्धि और शांति का निवास होना चाहिए, जिससे जीवन पूर्ण हो जाए।

कविता का मुख्य संदेश है कि मन को शुद्ध और पवित्र बनाना चाहिए, इसे प्रेम, शांति, सच्चाई, आध्यात्मिकता, सकारात्मकता और अच्छाई से भरना चाहिए। ऐसा मन न केवल व्यक्ति के लिए बल्कि समाज के लिए भी सुख, समृद्धि और शांति का कारण बनता है।

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