मनुष्य की पहचान उसके नाम से व्यक्तिगत एवं सामाजिक दृष्टिकोण से किया जा सकता हैं, परन्तु प्राकृतिक दृष्टिकोण से मनुष्य की पहचान उसके कर्मों से ही होता हैं कर्म से आशय हैं ” अपने जीवन का प्रकृति के प्रति योगदान ” आपका योगदान ही तय करता हैं कि वास्तव में आप कौन हैं ? “
मनुष्य की पहचान दो प्रमुख दृष्टिकोणों से की जा सकती है—व्यक्तिगत और सामाजिक। व्यक्तिगत दृष्टिकोण से, एक व्यक्ति की पहचान उसके नाम से होती है, जो उसे विशिष्ट बनाता है और उसके व्यक्तिगत अस्तित्व को दर्शाता है। सामाजिक दृष्टिकोण से, नाम और सामाजिक स्थिति उसे समाज में एक स्थान प्रदान करते हैं, जैसे उसकी भूमिका, पेशा, और सामाजिक संबंध।
हालांकि, प्राकृतिक दृष्टिकोण से पहचान का एक अलग आधार होता है। यहाँ “कर्म” का मतलब है कि एक व्यक्ति का जीवन कैसे प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण के प्रति योगदान करता है। यह योगदान इस बात को प्रकट करता है कि व्यक्ति अपने जीवन में किस प्रकार से प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखता है और उसकी देखभाल करता है।
इस प्रकार, एक व्यक्ति का वास्तविक अस्तित्व और उसकी असली पहचान उसके कर्मों, यानी उसके प्रकृति के प्रति योगदान, से ही निर्धारित होती है। यह दर्शाता है कि केवल नाम और सामाजिक स्थिति ही नहीं, बल्कि एक व्यक्ति की वास्तविकता और मूल्य उसकी पर्यावरणीय और प्राकृतिक जिम्मेदारियों के प्रति समर्पण से प्रकट होती है।