किताब हूँ मैं

अपने लेख का किताब हूँ मैं

जिसमे स्याही भी मैं

और लिखावट भी मैं I

अपने सफर का किताब हूँ मैं

जिसमे नायक भी मैं

और खलनायक भी मैं I

इस कविता में कवि अपने जीवन की कथा को एक किताब के रूप में प्रस्तुत करते हैं। वे स्वयं ही उस किताब की स्याही और लिखावट हैं, जो उनके जीवन के हर पहलू को दर्शाती है। वे अपने सफर की कहानी में नायक भी हैं और खलनायक भी, जो उनके अनुभवों और संघर्षों का सजीव चित्रण है।

कवि इस बात को उजागर करते हैं कि उनके जीवन की हर घटना, उनकी खुशी और दुख, उनकी सफलताएँ और असफलताएँ, सब कुछ उनकी अपनी कलम से लिखा गया है। उनके जीवन की किताब में प्रत्येक पृष्ठ पर उनकी अपनी छाप है, और वे स्वयं ही अपने जीवन के लेखक और पात्र हैं। इस प्रकार, कवि अपने जीवन को एक अद्वितीय और व्यक्तिगत कहानी के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जिसमें वे हर भूमिका निभाते हैं।

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