प्रभु रस मैं पी जाऊँ

प्रभु के अमृत रस की प्याली,
सपनों में बसी सुख की डाली।
हर बूँद में बसी हो उसकी ममता,
उसकी भक्ति में खुद को खो दूँ,
प्रभु के प्रेम की प्याली मैं पी जाऊँ।

संसार की हर एक घड़ी में,
उसके प्रेम का छाया छा जाए।
धड़कनों में बसी हो उसकी आवाज़,
हर दर्द और चिंता को दूर कर दूँ,
प्रभु के रस से मन को सुला दूँ।

मायावी लहरों से पार हो जाऊँ,
उसकी भक्ति की अग्नि में जल जाऊँ।
प्रभु के प्रेम की मिठास से,
संसार के हर कष्ट को भूल जाऊँ,
उस अमृत के प्याले को पी जाऊँ।

प्रभु की उपासना की इस यात्रा में,
हर कदम पर उसका आशीर्वाद पाऊँ।
उसके प्रेम की गहराई में,
हर सांस में उसकी उपस्थिति महसूस करूँ,
प्रभु के रस में मैं खो जाऊँ।

कविता में निहित भाव-संसार का गहन विश्लेषण करने पर हमें प्रेम और भक्ति की एक अद्वितीय दुनिया का दर्शन होता है। कवि ने प्रभु-प्रेम को जीवन के केंद्र में रखते हुए, उसकी महत्ता को अत्यंत मार्मिक ढंग से व्यक्त किया है।

प्रभु के अमृत रस की प्याली’ – यह एक अलौकिक छवि है, जो प्रभु-प्रेम की मिठास और जीवनवर्धक गुणों को उजागर करती है। यह प्याली न केवल भौतिक प्यास बुझाती है अपितु आत्मिक प्यास को भी तृप्त करती है। ‘सपनों में बसी सुख की डाली’ के रूप में प्रभु-प्रेम की कल्पना, कवि की उस आंतरिक तृष्णा को दर्शाती है, जो केवल प्रभु के समीप आकर ही शांत हो सकती है।

कविता में प्रयुक्त ‘हर बूँद में बसी हो उसकी ममता’ की पंक्ति, प्रभु-प्रेम की सर्वव्यापकता को रेखांकित करती है। यह दर्शाता है कि प्रभु का प्रेम जीवन के हर पहलू में विद्यमान है, बस हमें उसे अनुभव करने की दृष्टि चाहिए।

उसकी भक्ति में खुद को खो दूँ’ – यह पंक्ति कवि की आत्मिक उन्नति की तीव्र इच्छा को प्रकट करती है। वह प्रभु में पूर्णतया लीन होकर, अपने अहंकार को त्यागना चाहता है। ‘प्रभु के प्रेम की प्याली मैं पी जाऊँ’ की पंक्ति इसी भावना को आगे बढ़ाती है, जहां कवि प्रभु-प्रेम को जीवन का एकमात्र आधार मान लेता है।

‘धड़कनों में बसी हो उसकी आवाज़’ – यह पंक्ति प्रभु के साथ एक अटूट संबंध की अभिव्यक्ति है। कवि का मानना है कि प्रभु का स्मरण ही जीवन की धड़कन है। ‘हर दर्द और चिंता को दूर कर दूँ, प्रभु के रस से मन को सुला दूँ’ की पंक्ति में कवि ने प्रभु-प्रेम को एक शांतिदायक बल के रूप में प्रस्तुत किया है।

मायावी लहरों से पार हो जाऊँ, उसकी भक्ति की अग्नि में जल जाऊँ’ – ये पंक्तियां आत्मिक शुद्धि और मोक्ष की इच्छा को दर्शाती हैं। कवि संसारिक मोह-माया से मुक्त होकर, प्रभु-भक्ति की तपस्या में लीन होना चाहता है।

कविता का समापन प्रभु-प्रेम की गहराई में डूबने की आकांक्षा के साथ होता है। ‘उसके प्रेम की गहराई में, हर सांस में उसकी उपस्थिति महसूस करूँ, प्रभु के रस में मैं खो जाऊँ’ – ये पंक्तियां कवि की आत्मिक यात्रा की पराकाष्ठा को दर्शाती हैं।

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